Friday, 9 November 2012

अच्छे काम का पुरस्कार




एक बूढ़ा रास्ते से कठिनता से चला जा रहा था। उस समय हवा बड़े जोरों से चल रही थी। अचानक उस बूढ़े की टोपी हवा से उड़ गई।

 उसके पास होकर दो लड़के स्कूल जा रहे थे। उनसे बूढ़े ने कहा- 

मेरी टोपी उड़ गई है, उसे पकड़ो। नहीं तो मैं बिना टोपी का हो जाऊंगा।

वे लड़के उसकी बात पर ध्यान न देकर टोपी के उड़ने का मजा लेते हुए हंसने लगे। इतने में लीला नाम की एक लड़की, जो स्कूल में पढ़ती थी, उसी रास्ते पर आ पहुंची।
 
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उसने तुरंत ही दौड़कर वह टोपी पकड़ ली और अपने कपड़े से धूल झाड़कर तथा पोंछकर उस बूढ़े को दे दी। उसके बाद वे सब लड़के स्कूल चले गए। 
गुरुजी ने टोपी वाली यह घटना स्कूल की खिड़की से देखी थी। इसलिए पढ़ाई के बाद उन्होंने सब विद्यार्थियों के सामने वह टोपी वाली बात कही और लीला के काम की प्रशंसा की तथा उन दोनों लड़कों के व्यवहार पर उन्हें बहुत धिक्कारा।

शिक्षा
यह कहानी हमें शिक्षा देती है कि हमें कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। साथ ही हमें हर जरूरतमंद व्यक्ति की हमेशा मदद करनी चाहिए चाहे वो छोटा हो या बड़ा।
इसके बाद गुरुजी ने अपने पास से एक सुंदर चित्रों की पुस्तक उस छोटी लड़की को भेंट दी और उस पर इस प्रकार लिख दिया- लीला बहन को उसके अच्छे काम के लिए गुरुजी की ओर से यह पुस्तक भेंट की गई है।

जो लड़के गरीब की टोपी उड़ती देखकर हंसे थे, वे इस घटना का देखकर बहुत लज्जित और दुखी हुए।

अपना दीपक बनो

दो यात्री धर्मशाला में ठहरे हुए थे। एक दीप बेचने वाला आया। एक यात्री ने दीप खरीद लिया। दूसरे ने सोचा, मैं भी इसके साथ ही चल पडूंगा, मुझे दीप खरीदने की क्या जरूरत है। दीप लेकर पहला यात्री रात में चल पड़ा, दूसरा भी उसके साथ लग लिया। थोड़ी दूर चलकर पहला यात्री एक ओर मुड़ गया। दूसरे यात्री को विपरीत दिशा में जाना था। वह वहीं रह गया। बिना उजाले के लौट भी नहीं पाया। महात्मा बुद्ध ने कहा- भिक्षुओं! अपना दीपक बनो। अपने कार्य ही अपने दीप हैं। वही मार्ग दिखाएंगे।
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Thursday, 27 September 2012

LATA MANGESHKAR

जन्म दिवस 28 सितम्बर पर विशेष
भारत रत्न लता मंगेशकर

कोकिल कंठ लता मंगेशकर के बारे में उस्ताद अमजद अली खां का मानना है कि अगर ताजमहल सातवां अजूबा है तो लतामंगेशकर आठवां। उस्ताद बडे गुलाम अली खां उन्हें तीन मिनट की जादूगरनी कहा था। लता जन्म 28 सितम्बर 1929 को शनिवार की रात्रि में दस बजकर तीस मिनट पर अपनी मौसी के घर इन्दौर (मध्य प्रदेश) भारत में हुआ। बचपन में लता नूरजहां और सहगल के गीत गुनगुनाया करती थीं। जब यह 13 वर्ष की थी तो इनके पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर क निधन हो गया जो एक संगीत नाटक कंपनी चलाते थे। अब घर की सारी जिम्मेदारी लता के कंधों पर आन पडी। अपनी चार बहनों और एक भाई में सबसे बडी लता को इनके चाचा मास्टर विनायक ने अपनी कंपनी में बालकलाकार के रूप में काम देकर इनकी सहायता की। इनका बचपन में हेमा नाम रखा गया। बचपन में इनके पिता जी इन्हें प्यार से हृदया पुकारते थे। इसके बाद इनका नाम लता हो गया। बचपन में अपने उस्ताद अमानत अमान अली से फिर उस्ताद अमानत खां देवास वाले तथा उस्ताद बडे गुलाम अली खां के शागिर्द पं. तुलसी दास शर्मा आदि महान गायकों से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। इनको सुगम संगीत से बेहद लगाव रहा। इतना अनुभव प्राप्त करने के पश्चात लता ने आरंभ में कुछ हिन्दी फिल्मों -बत्रडी मां (1945), जीवन यात्रा (1946), मन्दिर (1948) और छत्रपति शिवाजी (1952), आदि में अभिनय किया। इसके अतिरिक्त लता ने 5 मराठी फिल्मों में अभिनय भी किया।
9वर्ष की उम्र में पहली बार शास्त्रीय गायन पेश करने वाली गायिका तला मंगेशकर ने अपने जीवन का सबसे पहला हिन्दी फिल्मी पार्श्वगीत पा लांगू कर जोरी रे श्याम मुझसे न खेलो होरी रे, फिल्म आपकी सेवा में 1947 में गाया जिसके संगीतकार थे। दत्ता डावजेकर और गीतकार थे महिपाल। इस समय फिल्मों में - नूरजहां, शमशाद बेगम, जोहरा बाई अंबाला वाली, अमीर बाई कर्नाटकी, सुरैया, राजकुमारी जैसी सफल गायिकाएं मौजूद थीं और इनके सामने टिकना बत्रडा कठिन था। ठीक इसी समय समय ने करवट बदली और नौशाद, अनिल विश्वास, खेमचन्द्र प्रकाश, सी. रामचन्द्र, शंकर जय किशन तथा मदन मोहन जैसे महान संगीतकारों ने लता से गीत गवाने शुरू कर दिए। देखते ही देखते सफलताएं इनके कदम चूमने लगीं। 1955 तक लता मंगेशकर अपने 1000 फिल्मी गीत गा चुकी थी। सभी नायिकाएं इनसे बहुत पीछे छूटती गयीं और लता का फिल्मी साम्राज्य स्थापित हो गया। हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में लता की सुरीली आवाज सुनने वालों के कानों में रस घोलती रहती है। लता कापूरा व्यक्तित्व ही एक सादगी और पवित्रता से भरा हुआ है।
लता के गाये हिन्दी फिल्मी गीतों कीं संख्या लगभग 6000 से कम है। लता ने नौशाद-155, शंकर जयकिशन-453, सी. रामचन्द्र- 298, मदन मोहन-210, अनिल विश्वास-123,  हेमन्त कुमार- 139, चित्रगुप्त- 240, रवि-75, एस.डी. बर्मन - 182, आर.डी. बर्मन- 327, एल.पी- 666, कल्याणजी आनंद जी- 297, हुस्न लाल भगत राम- 107, आदि संगीतकारों के लिए स्वर दिया। इनके नाम पर मध्य प्रदेश सरकार ने 1984 से सुगम संगीत के क्षेत्र में अखिल भातरीय स्तर पर एक लाख रुपये का पुरस्कार देना आरम्भ किया है। अब तक यह नौशाद, किशोर, जयदेव, मन्ना डे, खय्याम, आशाभोंसले सहित कई फिल्मी हस्तियों को यह पुरस्कार मिल चुका है। भारत सरकार ने 1969 में पद्भभूषण प्रदान किया। सर्वोत्कृष्ट पार्श्वगायन के लिए लता जी को 4 बार फिल्मफेयर अवार्ड इन गीतों के लिए हासिल हुआ। फिल्म उद्योग और संगीत की उच्चतम सेवा के लिए फिल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ दादा फाल्के पुरस्कार से 1989 में सम्मानितकिया गया। महान गायिका लता मंगेशकर को भारत के सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से मार्च, 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने अलंकृत किया।



Friday, 20 July 2012

समय की किल्लत को कैसे करें दूर

हम अक्सर समय की किल्लत का रोना रोते रहते हैं। शादी, पार्टी और विशेष उत्सव पर न पहुंच पाने की मजबूरी ‘समय की कमी’ के सिर थोप देते हैं, जबकि आदमी के पास समय की कमी नहीं होती। कमी होती

है तो सिर्फ उसके मैनेजमेंट की। उसकी व्यवस्था की। समय की किल्लत दूर करने के कई रास्ते हैं। पहला रास्ता टाइम मैनेजमेंट से संबंध रखता है तो दूसरा अपनी संयमित ज़िन्दगी से। ज़िन्दगी संयमपूर्ण और अनुशासित है तो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए शरीर में पर्याह्रश्वत ऊर्जा और क्षमता होगी। कोई काम बकाया नहीं रहेगा। सभी काम पूरे होंगे। समय सिमट कर हथेली पर आ जाएगा। समय की किल्लत दूर होगी। समय को यदि काम के बोझ के अनुसार विभाजित कर लिया जाए तो शायद समय की किल्लत से बचा जा सकता है, इसलिए जरूरी है कि हम पहले इस पर ही विचार करें। जो काम पहले करने हैं उनको प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखें। इसके लिए कामों की एक सूची बना लें और उन्हें व्यवस्था, क्षमता और संसाधन के अनुसार क्रम में रख लें।

जब हम समय ह्रश्वलान कर रहे हों तो देखें कि कौनसा काम सबसे कम समय में और कितने सही तरीके से कर सकते हैं। उस काम पर आपकी नÊार बिल्ली की आंख में आए उस शिकार की तरह होनी चाहिए, जिसे फौरन निबटाना है, पर यहां शुरू करने से पहले यह जरूर समझ लें कि काम हम ठीक तरह कर पाएंगे या नहीं। ऐसा न हो कि वह आधा— अधूरा रह जाए और उस पर दोबारा मेहनत करनी पड़े। लोग अक्सर अपने कामों के प्रति बेपरवाह हो जाते हैं। वे काम को हमेशा कल के भरोसे छोड़ देते हैं और काम पीछे रह जाते हैं। काम पूरा करने के लिए हमें खुद पर सती बरतनी चाहिए।


समय और मनोविज्ञान बहुमुखी प्रतिभा के धनी अमेरिकी विचारक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में समय के महत्व पर खूब जोर दिया। उनके अनुसार नर्व सेल्स सभी अनुभूतियों को पहले ही दिमाग तक संप्रेषित कर देते हैं, जिस कारण हम अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। उन्होंने कहा था कि समय ही धन है, इसे मनोवैज्ञानिक के संदर्भ में कहें तो सच यह होगा कि समय ही संज्ञान है।


अच्छे काम को चिल्लर कहकर खारिज न करें

यह गाथा आपके दिल को छू लेगी। इस स्वार्थी और अपने आप में सिमटी दुनिया में, जहां पर कई बार इंसानी जिंदगी की भी परवाह नहीं की जाती, वहां पर मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी के कुछ बच्चों ने मिलकर एक भटके हुए कुत्ते की जान बचाई। इन बच्चों को ऐसा करने की प्रेरणा वर्ष 2011 में आई फिल्म 'चिल्लर पार्टी' (नितेश तिवारी और विकास बहल द्वारा निर्देशित) से मिली, जिसमें बच्चों का समूह साथ मिलकर इसी तरह एक आवारा भटकते कुत्ते को बचाता है।


9 साल का पामेरियन नस्ल का यह कुत्ता मुंबई के एक पश्चिमी उपनगरीय इलाके सांताक्रुज (पूर्व) में कुमार सोसायटी में रहने वाले दस वर्षीय ऑरोन डी'सिल्वा को दारुण अवस्था में मिला था, जिसे सोसायटी के चौकीदार समेत कुछ लोग मिलकर मार रहे थे। जल्द ही जेनेल डी'सिल्वा (12), पार्थ मुखर्जी (15), अनुष्का वर्मा (11), मिहिर सावंतगे (12), मिताली खांडेकर (8), अथर्व पंडित (13), निखिल दाबाले (14) और सान्या पंडित (11) जैसे सोसायटी के अन्य बच्चे भी ऑरोन और कुत्ते की मदद के लिए आ गए। सबने मिलकर अपने इस नए दोस्त के लिए र्ईंटों का एक छोटा-सा घरोंदा बनाया। उन्होंने उसे थोड़ा दूध पिलाया और सबकी सहमति से उसका नाम रखा गया- रॉकी।


इतना ही नहीं, 8 से 15 साल के इन बच्चों ने एक ऐसा एनजीओ भी तलाशा, जो उनके इस चौपाए दोस्त के लिए घर पाने में उनकी मदद करे। तब तक वे उसके अस्थायी बसेरे में उसकी देखभाल करेंगे। ये बच्चे पहले अपनी कॉलोनी के एक जिम्मेदार शख्स से जाकर मिले ताकि रॉकी को कोई स्थायी ठिकाना न मिलने तक साथ रखने की इजाजत मिल सके। सोसायटी के नियमों के मुताबिक वहां आवारा कुत्ते नहीं रखे जा सकते थे। बच्चे इस कुत्ते को पशु-चिकित्सक डॉ. उमेश करकरे के पास भी ले गए। बच्चों के व्यवहार को देखते हुए डॉ. करकरे ने इसके घावों की मुफ्त में मरहम-पट्टïी कर दी। उन्होंने इस कुत्ते की जांच के बाद पाया कि उसकी एक आंख में मोतियाबिंद भी है, जिसका ऑपरेशन बाद में किया जाएगा।


एक खास दोस्त को खास ट्रीटमेंट तो मिलना ही चाहिए। एक स्पा ट्रीटमेंट लेने के बाद वह इतना सुंदर दिखने लगा कि कहना मुश्किल था कि यह वही आवारा भटकने वाला कुत्ता है। अब बच्चे अपने इस चौपाए दोस्त के लिए स्थायी आशियाने की तलाश में जुट गए। पहले उन्होंने कुछ पैसे जुटाने की सोची और आस-पड़ोस से 5000 रुपए तक इकठ्ठा कर लिए।

जब मीडिया में इस चिल्लर पार्टी की स्टोरी आई, तो एक अन्य उपनगरीय इलाके में रहने वाली दो बहनों के एक परिवार ने एनजीओ से संपर्क साधा, जिसने आधिकारिक तौर पर रॉकी को अपनाने में उनकी मदद की। किसी भी परित्यक्त कुत्ते को आश्रय देने के लिए जरूरी यह है कि संभावित आश्रयदाता के साथ कनेक्शन बनाया जाए। लेकिन ऐसा कनेक्शन बनाना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है। एक हाउसिंग सोसायटी की नौ बच्चों की यह चिल्लर पार्टी हमारे बंद समाज से भी संबंधित है, जहां पर हम उदारता या सहृदयता के तमाम दरवाजे बंद करते हुए रहते हैं और ऐसा एक भी दरवाजा खुला नहीं छोड़ते।


 prayagraj