Saturday, 4 July 2020

UPSC : प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

UPSC (आईएएस)

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

प्रश्न:1- सिविल सेवा के लिए सामान्य योग्यता क्या है?

उत्तर:1- सिविल सेवा या राज्य सिविल सेवा के लिए योग्यता मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक और न्यूनतम उम्र 21 वर्ष और अधिकतम उम्र सीमा 32 वर्ष से कम होनी चाहिए। आरक्षित वर्गाें को उम्र में नियमानुसार छूट दी जाती है।

प्रश्न:2- सफलता के लिए उत्तरदायी कारक क्या है?

उत्तर:2- सिविल सेवा देश स्तर की सबसे बेहतरीन सेवा की प्रतियोगी परीक्षा में सफल होना सभी परीक्षार्थियों का एक सपना होता है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से तैयारी, विषयों की स्पष्ट और पारदर्शी समझ, कुशल समय प्रबंधन और सबसे महत्वपूर्ण, अपनी कमजोरियां और ताकत जानना जानना जरूरी है। सम्पूर्ण तैयारी के दौरान अपनी दिशा नहीं खोनी चाहिए।

प्रश्नः3-वे कौन से कारक हैं जो इस परीक्षा को आसान बनाते हैं।

उत्तरः3- इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए रणनीति सबसे महत्वपूर्ण है। अभ्यर्थी को इस परीक्षा में शामिल होने के एक से डेढ़ वर्ष पूर्व तैयारी आरंभ कर देनी चाहिए। सभी विषयों की तैयारी एक साथ न करके उसे एक क्रम में करना चाहिए। प्रारंभिक परीक्षा के बाद वैकल्पिक विषय की पढ़ाई करनी चाहिए। पढ़ने के साथ-साथ दोहराने की भी प्रक्रिया जारी रखनी चाहिए।

                इस प्रतियोगी परीक्षा में समसायिक मुद्दे से प्रश्न पूछे जाते हैं जो कि सफलता में विशष रूप से प्रारंभिक परीक्षा में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसकी तैयारी के लिए समाचार पत्र और कोई एक मासिक पत्रिका का सहारा लेना चाहिए। इस समसामयिकता का प्रभाव मुख्य परीक्षा पर भी होता है अतः इसकी तैयारी मूल विषय जैसे इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, सामान्य विज्ञान आदि से जोड़कर तैयारी करने की प्रवृत्ति एक अच्छी रणनीति मानी जाती है।

प्रश्नः4- समाचार पत्र और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का क्या महत्व है?

उत्तरः4- जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि समसामयिक मुद्दे से प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों में सवाल पूछे जाते हैं अतः यह एक बहुत ही महवत्वपूर्ण भाग है। सामान्य अध्ययन के लिए समाचार पत्र,पत्रिकाएं, ईयरबुक आदि अपरिहार्य रूप से आवश्यक होते हैं।

                यह सूचना का युग है साथ ही यह सूचना की बोझिलता का भी युग है। इसलिए यह तय करना बहुत जरूरी है कि क्या पढ़ा जाए और क्या छोड़ा जाय। परीक्षा की विस्तृत प्रक्रिया और पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए परीक्षार्थी को विगत वर्षाें में पूछे गए प्रश्नों को गहराई से समझना चाहिए। उपलब्ध अध्ययन सामग्रियों में इन तत्वों को खोजना चाहिए।

                स्ंघ लोक सेवा आयोग की प्रकृति को पहचानना बहुत जरूरी है। उसी के अनुसार अपनी तैयारी को बेहतर करना चाहिए।

प्रश्नः5नेगेटिव मार्किंग के प्रति क्या रणनीति होनी चाहिए?

उत्तरः5-संघलोक सेवा आयोग के नियम के अनुसार प्रत्येक गलत उत्तर के लिए एक तिहाई  (0.33) अंक दंडस्वरूप काट लिया जाएगा। यदि परीक्षार्थी एक प्रश्न का एक से अधिक उत्तर देतेे हैंं तब भी उसे गलत उत्तर माना जाता है भले ही एक उत्तर सही हो। यदि पश्न को अनुत्तरित छोड़ दिया जाता है तो उसे गलत नहीं माना जाता है।

                नेगेटिव मार्किंग से घबराने की जगह सकारात्म होने की जरूरत है। यह तुक्केबाजी जैसी प्रवृत्ति को खतम करने और केवल गम्भीर विद्यार्थियों के लिए लागू की गई व्यवस्था इसके अनुसार केवल उत्तर तभी दें जब आप उसे सही मानते हैं। इसके लिए प्रारंभिक परीक्षा में कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जैसे

1.            प्रथम चरण में केवल उन्हीं प्रश्नों के उत्तर दीजिए जिसे आप सही मानते हैं। दुविधा को प्रश्नों को अभी छोड़े रहें। परीक्षा के अन्तिम आधेघण्टे में इन प्रश्नों को दुहराना चाहिए।

2.            जिन प्रश्नों के उत्तर आप नहीं जानते हैं उन्हें हल करने की गलती न करें। अनुमान से प्रश्न को हल न करें।

प्रश्नः6- मुख्य परीक्षा में लोकप्रिय विषय लेना चाहिए?

उत्तरः6- संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा में सफलता के लिए एक वैकल्पिक विषय का अध्ययन आवश्यक है। यह विषय कौन सा होना चाहिए इसके लिए यह तय करना जरूरी है कि इसे आप स्नातक या परास्नातक स्तर पर पढ़ा हुआ होना चाहिए या फिर आपकी की इस विषय विशेष में समझ अच्छी हो। ज्यादातर विद्यार्थी किसी लोकप्रिय या अच्छे नम्बर आने को इसका आधार बनाते हैं जो कि सही रणनीति नहीं है क्योंकि विषय विशेष एक विद्यार्थी के लिए सरल तो दूसरे के लिए कठिन भी हो सकता है।

                इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विषय का चुनाव काफी सावधानी से करना चाहिए। वैसे लोकप्रिय विषय जैसे इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, लोकप्रशासन, राजनीति विज्ञान, मानव विज्ञान, मनोविज्ञान, हिन्दी साहित्य से चुनाव एक सही रणनीति हो सकती है फिर भी इन विषयों में से भी एक ही विषय का चुनाव करना चाहिए। विषय आपकी रुचि और समझ में आने वाला होना आवश्यक है।

प्रश्नः7-प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा की तैयारी एक साथ करनी चाहिए या अलग-अलग?

उत्तरः7-प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए सही रणनीति के अनुसार तैयारी करना आवश्यक है। इसके लिए प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों को समान रूप से महत्वपूर्ण मानना आवश्यक है। सामान्य रूप से विद्यार्थी प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी पहले करते हैं और मुख्य परीक्षा व साखात्कार की बाद में। सामान्य से इसे सही कहा जा सकता है साथ ही सही यह है कि प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा की तैयारी साथ-साथ करनी चाहिए।  इससे एक ओर जहां संकल्पनात्मक समझ विकसित होती है वहीं दूसरी ओर तथ्यों पर पकड़ भी मजबूत होती है। इससे प्रश्नों के विश्लेषण में सहायता मिलती है।

प्रश्नः8-प्रश्नों की प्रकृति की पहचान कैसे करें?

उत्तरः8-सिविल सेवा की परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों की अन्तिम शब्दों का एक विशेष अर्थ होता है एवं प्रतियोगी से अपेक्षा की जाती है कि उत्तर इसी के अनुरूप लिखा जाए। इससे ही प्रशनों की प्रकृति निर्धारित होती है। प्रश्नों की प्रकृति को निर्धारित करने वाले इन्ही शब्दों को समझने का प्रयास करते हैं जिससे उत्तर लिखने में आसानी हो सके।

टिप्पणी करना -इसके अन्तर्गत टीका करने की जरूरत होती है। मुख्यरूप से अभ्यर्थी अपना मत प्रकट कर सकते हैं। इस प्रकार के उत्तर में परीक्षार्थी सीधे-सपाट तौर पर दिये गये कथन पर उससे मेल खाते हुए अथवा विरोध में विचार प्रकट कर सकते हैं। बेहतर यह होता है कि अभ्यर्थी मध्यम मार्ग अपनाते हुए संतुलित विचार प्रकट करे।

विवेचना करना -विवेचन का तात्पर्य है दिए गए विषय पर उसके विविध पहलुओं के संदर्भ में सीधे रूप में चर्चा की जाए। अर्थात् विषय पर अपनी जानकारी को सिलसिलेवार रूप में प्रस्तुत करें। विवेचन के लिए किसी विशेष एप्रोचकी जरूरत नहीं होती।

चर्चा करना -विषय को सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत करना।

विशद विवेचन करना- विवेचन का विशद रूपअर्थात विषय वस्तु पर विस्तृत रूप में लिखना।

विस्तार करना- विशद विवेचन के तरह की विस्तृत लेखन।

व्याख्या करना- व्याख्या करने का सीधा अर्थ होता है दिए गए कथन को सरल बनाया जाए। अभ्यर्थियों को चाहिए कि वे व्याख्या करते समय दिये गये कथन के बारे में कुछ इस तरह लिखें कि उसका सही अर्थ स्पष्ट हो जाए। व्याख्या के अन्तर्गत आपको सहज एवं सरल तरीके से दिए गए कथन को समझाना होता है।

स्पष्टीकरण देना- व्याख्या का ही एक अन्य रूप जिसके अन्तर्गत उल्लिखित विषय को सरल और सहज शैली में प्रस्तुत करना होता है।

विस्तारी करण करना- व्याख्या के समान ही दिए गए कथन को विस्तृत करना जो कि सहज और संतुलित स्वरूप में हो।

परीक्षण करना- इसके तहत दिए गए कथन से जुड़े विभिन्न तथ्यों पर अलग-अलग चर्चा करने तथा अंततः विषय की संरचना एवं स्वरूप पर प्रकाश डालना एवं कथन की जांच करना होता है।

विश्लेषण करना- इसके तहत दिए गए कथन से जुड़े विभिन्न तथ्यों पर अलग-अलग चर्चा करने तथा अंततः विषय की संरचना एवं स्वरूप एवं स्वरूप पर प्रकाश डालने की आवश्यकता होती है।

मूल्यांकन करना- इसके अन्तर्गत किसी भी कथन अथवा तथ्य का उचित रीति से गुण-दोष सहित वर्णन प्रस्तुत करना होता है।

आलोचना करना- इसका तात्पर्य किसीवस्तु का छिद्रान्वेषण करना अथवा उचित अनुचित का ज्ञान कराना है। इसके तहत किसी पहलू के सकारात्मक और नकारात्मक तथ्यों को उजागर किया जाता है। आलोचना करते समय अभ्यर्थी को चाहिए कि वे नकारात्मक पहलुओं पर विशेष जोर डालें। साथ ही प्रश्न के अंत में एक प्रभावपूर्ण निष्कर्ष भी निकालें।

आलोचनात्मक व्याख्या- किसी भी तथ्य का व्याख्यात्मक ढंग से आलोचना ताकि इसका अर्थ स्पष्ट हो सके।

आलोचनात्मक परीक्षण- किसी भी तथ्य का परीक्षण करते हुए आलोचना करना।

समीक्षा करना- सकारात्मक -नकारात्मक दोनों पक्षों का संतुलित वर्णन करना।

प्रश्नः9- मुख्य परीक्षा में समय प्रबन्धन कितना महत्वपूर्ण है?

उत्तरः9-मुख्य परीक्षा में समय प्रबन्धन बहुत महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा हाल में प्रश्नपत्र होते ही सर्वप्रथम उसे एक बार ध्यानपूर्वक पढ़ लें। इसके बाद यह तय कर लें कि किन प्रश्नों के उत्तर आप बेहतर तरीके से जानते हैं उन्हें ही सर्वप्रथम लिखें। हालांकि सभी प्रश्नों को बराबर समय में लिखना थोड़ा मुश्किल अवश्य है लेकिन प्रयास करें कि सभी प्रश्नों पर बराबर समय आवंटित कर यथासंभव सभी प्रश्नों के उत्तर समान समय में दें। अगर आप किसी प्रश्न में अधिक समय दे रहे हैं तो यह निश्चित रूप से दूसरे प्रश्नों की कीमत पर कर रहे हैं। टिप्पणी वाले प्रश्नों में शब्द सीमा का पालन कड़ाई से करें। प्रश्नों के उत्तर में ज्यादा तथ्यों समावेश न करके संतुलन का भाव अपनाना चाहिए।


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